आशु भटनागर । सोमवार की सुबह अचानक ग्रेनोवेस्ट की एक सोसाइटी में पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर के साथ भीड़ के वीडियो वायरल होने लगे सोशल मीडिया पर पुलिस अधिकारी द्वारा सोसाइटी में बिना स्टीकर कार को एंट्री ना देने पर गार्ड को थप्पड़ मारने की बात लिखते हुए लोगों ने पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिया । सोसाइटी के लोगों ने हंगामें के बीच पुलिस को बुला लिया और तथाकथित तौर पर दोषी सब इंस्पेक्टर के खिलाफ सस्पेंशन की मांग की। समाचार लिखे जाने तक दोनों पक्षों में समझौता हो गया और फिलहाल इस प्रकरण का पटाक्षेप माना जा रहा है। फिर भी इस प्रकरण में डीसीपी सेंट्रल नोएडा द्वारा एसीपी 2 सेंट्रल नोएडा को जांच हेतु दोनों पक्षों को सुनकर एक तथ्यात्मक आख्या उपलब्ध कराने हेतु निर्देशित किया गया है।
घटना छोटी किंतु पुलिस और समाज की बीच अविश्वास बड़ी समस्या
घटना का पटाक्षेप भले ही हो गया हो किंतु इस घटना ने एक बार फिर से पुलिस और समाज के बीच विश्वास पर प्रश्न खड़े कर दिए हैं । प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ऐसी घटनाओं के बाद अक्सर समाज में पुलिस के ऊपर कानून व्यवस्था लागू करने के विश्वास को क्षति पहुंचती है इनके क्षणिक प्रभाव भले ही समझोतो से कम किए जा सकते है हो किंतु इनका असर दूरगामी होता है।
ग्रेनोवेस्ट एक उभरता हुआ शहर है यहां रहने वाले लोग अधिकांश लोग मध्यम वर्गीय व्यापारी या नौकरी पेशा है और सबसे बड़ी बात बिल्डर माफिया के गठजोड़ से पैदा हुए भ्रष्टाचार के सताए हुए है । इनको अपराधी मानना या दुराग्रह रखना भी गलत है ।
ऐसे में ला रेसिडेंशिया में हुई घटना दुर्भाग्यपूर्ण है और इसमें दोनों ही पक्ष बराबर के दोषी हैं और दोनो ही पक्षों को सुझबुझ के साथ रहना आवश्यक है ।
संभवत अगर पुलिस का कोई कर्मी या अधिकारी सोसाइटी में रहे तो भी उसको सामान्य निवासियों की तरह मानना थोड़ी सी ज्यादती है, साथ ही अगर पुलिस का अधिकारी वर्दी में है तो गार्ड द्वारा रूल्स के नाम पर रोकना भी सही तो नही कहा जा सकता है । कानून प्रक्रिया में गार्ड किसी भी तरीके से पुलिस से ऊपर नहीं है । सोसाइटी में रह रहे समाज को ये भी समझना होगा कि पुलिस में सिपाही से लेकर अधिकारी तक कितने प्रेशर में काम करते हैं ऐसे में कई बार उनकी कुछ बातों को नजरअंदाज किया जा सकता है।
यद्यपि पुलिस से भी सोसाइटी में रहने वाले पुलिस कर्मी या अधिकारियों से भी यह अपेक्षित होता है कि वह समाज में रहते हुए सामाजिक नियमों का पालन करते रहें । किसी भी परिस्थिति में पुलिस द्वारा भी कानून अपने हाथ में लेना सही नहीं कहा जा सकता है। कानून के रक्षक बने पुलिस वाले अपराधियों को कानून के दायरे में लाने के लिए प्रशिक्षित किए जाते हैं किंतु उन्हें भी ऑन द स्पॉट फैसला देने का अधिकार कानून नहीं देता है।
इसके साथ ही आरडब्ल्यूए/ ऐ ओ ए नेताओं और सुरक्षा कर्मियों को भी अपने अधिकारों और कर्तव्यों की सीमाओं का ज्ञान होना आवश्यक है । कोई पुलिस कर्मी या अधिकारी अगर आपकी सोसाइटी में रहने आता है तब भी उसके ऊपर कई कार्य कानून के दायरे में ही होते हैं ।
ऐसे में वर्दी पहने किसी भी अधिकारी को अपने घर में ही आने से रोकना सही नहीं हो सकता क्योंकि आप नहीं जानते हैं कि वह कितने घंटो की ड्यूटी के बाद घर आ रहा है या किसी इमरजेंसी में अपने घर में आ रहा है । सोसाइटी के बनाये नियम का पालन यदि अधिकारी की तरफ से नहीं हो रहा है तो उसको तमाशा बना लेने की जगह उसके शीर्ष अधिकारियों से शिकायत करके समस्याओं को सुलझाया जा सकता है।
अंत में पुलिस कमिश्नरेट को भी ये सुनिश्चित करना होगा कि वो “समाज के बीच पुलिसकर्मी या अधिकारी कैसे रहे” को लेकर भी लगातार शैक्षिक कार्यक्रम चलाए ताकि पुलिस के आचरण को लेकर उठने वाले प्रश्न और ऐसे हंगामाओ की पुनरावृत्ति को रोका जा सके ।