आशु भटनागर । शनिवार को जब पूरा देश, बिहार में हो रहे उलट फेर के बाद नीतीश कुमार के पलटू राम होने के समाचारों पर नजर जमाए हुए था, तब उत्तर प्रदेश में विपक्ष की राजनीति के सबसे आक्रामक किन्तु अकुशल खिलाड़ी कहे जाने वाले अखिलेश यादव ने चुपचाप इंडी (भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन I.N.D.I.A.) गठबंधन से अपने निकलने की डिप्लोमेटिक राजनीति शुरू कर दी। उन्होंने गठबंधन में लगी आग में घी डालते हुए कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में 11 सीटों पर साझेदारी देने का की घोषणा कर दी ।
बिहार की राजनीति की तपिश से झुलस रही कांग्रेस के शीर्ष संगठन की तरफ से अखिलेश यादव के प्रस्ताव पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है I प्रदेश अध्यक्ष अजय राय इस खेल पर प्रतिक्रिया से बचते हुए नजर आए । गठबंधन में 30 सीटों पर लड़ने का दावा करने वाली प्रदेश कांग्रेस को यह समझ नहीं आ रहा था कि अखिलेश कांग्रेस का मजाक उड़ा रहे हैं या फिर ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार के बाद गठबंधन से नौ दो ग्यारह होने की तैयारी कर रहे हैं।
इससे पहले आप सोचे कि हम अखिलेश के दिए प्रस्ताव को गठबंधन से नौ दो ग्यारह होने का क्यों कह रहे हैं, पहले समझते हैं गठबंधन में क्षेत्रीय दलों की कांग्रेस के साथ समस्या क्या है ?
कैसे बना बना गठबंधन, कैसे आए अखिलेश और क्यों बाहर जाना चाहते हैं अखिलेश ?
लगभग 1 साल पहले जब 2024 के चुनाव के लिए बीजेपी से लड़ने की तैयारी चल रही थी तब कर्नाटक में कांग्रेस की प्रचंड विजय के बाद बिखरे हुए विपक्ष की आशा कांग्रेस की तरफ जागी। इसी बीच राहुल गांधी को अदालत में एक प्रकरण में सजा सुना कर चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया।
बदली परिस्थिति में बिहार की राजनीति के सबसे बड़े खिलाड़ी नीतीश कुमार ने कांग्रेस के कंधे पर बंदूक रखकर बीजेपी से लड़ने और स्वयं के प्रधानमंत्री बनने के सपने को पूरा करने का उचित समय समझा और इंडिया गठबंधन की नींव रखी।
इसके बाद नीतीश ने ममता बनर्जी समेत तमाम विपक्ष के बड़े दलों को जोड़ना शुरु किया । एक बार प्रधानमंत्री बन जाने की नीतीश कुमार की चाह ऐसी थी कि वह कभी भी बीजेपी के खिलाफ न जाने वाले कर्नाटक के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तक के पास गठबंधन के लिए चले गए ।
इधर कोर्ट के फैसले के कारण कांग्रेस में अचानक राहुल गांधी हाशिए पर या फिर यूं कहें राजनैतिक कोमा में चले गए । उन्हें अचानक हुए इस घटना क्रम में समझ नहीं आ रहा था कि ये हमला भाजपा से था या फिर उनके ही पारिवारिक विरोधियो से था I किसी भी स्थिति में गांधी परिवार को ही अपना नेता मानने वाले कांग्रेसी कांग्रेसियों को प्रियंका गांधी में अपनी राह दिखाई देनी शुरू हुई । सोनिया गांधी के दबाब के बाबजूद 20 सालों से कांग्रेस से चुनाव लड़ने का सपना देखी प्रियंका गांधी को भी अन्य दलों के साथ मिलकर सत्ता वापसी की राह में ही कांग्रेस और अपनी नई राजनीति की राह दिखने लगी।
परिवार की राजनीतिक उथल-पुथल से कांग्रेस के अंदर चल रहा पारिवारिक संघर्ष एक बार फिर से सामने आ गया I पसंद ना होने बाबजूद राहुल गांधी ने इंडिया एलाइंस को तो कुछ नहीं कहा किंतु कांग्रेस के कार्यक्रमों को बदलना शुरू कर दिया उन्होंने तीन राज्यों के चुनाव से पहले भारत जोड़ो यात्रा शुरू कर दी और स्वयं को मजबूत करने की पहल कर दी ।
राहुल गांधी की यात्रा की इस रणनीति से गठबंधन के सभी क्षेत्रीय दलों ने उनसे किनारा किया इसमें उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव भी शामिल थे । यात्रा में मिल रही सफलता और लोगों के भारी जन समर्थन के बाद राहुल गांधी के सलाहकारों ने कांग्रेस में यह सलाह दी कि अगर राहुल गांधी तीन राज्यों के चुनाव के बाद गठबंधन की बात करें तो कांग्रेस के पास बारगेनिंग पावर होगी।
कांग्रेसी रणनीतिकारों को तब तब लग रहा था कि तीन राज्यों में बीजेपी को हराया जा सकता है । उत्साहित कांग्रेसी रणनीतिकारों ने मध्य प्रदेश में अखिलेश यादव के अपमान और उनका गठबंधन में सीट ना देने तक की बातें कहीं और कहा कि गठबंधन लोकसभा के लिए हैं विधान सभा चुनाव के लिए नहीं । मध्य प्रदेश में अपने साथ हुए धोखे और अपमान से अखिलेश यादव तिलमिलाए तो बहुत किंतु नीतीश और लालू के दबाव में वह गठबंधन से बाहर नहीं निकल पाए और अपमान का घूंट पीकर गठबंधन में ही बने रहे। किंतु अकेले लड़ने की कांग्रेस की राजनीति कांग्रेस को भारी पड़ी और तीनों राज्यों में कांग्रेस हार गई ।
2023 में तीन राज्यों की हार ने इंडी गठबंधन में खलबली मचा दी जो क्षेत्रीय दल कांग्रेस के नेतृत्व में इंडी गठबंधन के जरिए 2024 के लोकसभा चुनावो में जीत का सपना देख रहे थे उनको अचानक कांग्रेस किसी चुके हुए राजा की तरह बोझ लगने लगी और कांग्रेस के चलते उनको अपने राज्यों की राजनीति समाप्त होने दिखाई देने लगी ।
इसमें ममता बनर्जी को बंगाल में अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश में, लालू यादव को बिहार में और अरविंद केजरीवाल को दिल्ली से लेकर पंजाब तक ऐसा लगने लगा हिंदी बेल्ट के इन नेताओं ने लगातार कांग्रेस को उनके राज्यों में कम सीटों पर रहने का दबाव बनाना शुरू कियाI इस सब दबाव से निकलने के लिए राहुल गांधी के रणनीतिकारों ने एक बार फिर से भारत में यात्रा का आयोजन शुरू कर दिया और इस आयोजन में इस बार बंगाल बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से यात्रा निकालनी थी जहां पर राहुल गांधी कांग्रेस कैडर को यात्रा के जरिए जागृत करना चाहते थे ।
सारस और लोमड़ी की कहानी की तरह बनी दोस्ती या फिर इस गठबंधन में अपने-अपने हित देख रहे सभी दलों में राहुल गांधी के इस कदम से खलबली मच गई और इसकी सबसे पहला पहला ममता बनर्जी ने राहुल गांधी की यात्रा को बंगाल में रोकने से कर दी और यह घोषणा करी कि कांग्रेस के साथ बंगाल में कोई गठबंधन नहीं होगा इसी के साथ अब तक नानुकुर और समझौते के नाम पर कांग्रेस के साथ वार्ता तल रहे अरविंद केजरीवाल ने भी पंजाब में किसी भी तरीके के सीटों के बंटवारे के लिए लगभग मना करने के संकेत दे दिए।
इसी बीच गठबंधन में संयोजक के पद के लिए नीतीश कुमार के नाम की चर्चा जब शुरू हुई तब ममता बनर्जी ने नीतीश कुमार के नाम पर मना कर दिया और कांग्रेस से गांधी परिवार को भी दूर रखने के लिए वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम को प्रस्तावित कर दिया । इससे ममता बनर्जी एक तीर से दो शिकार करने में सफल होती देखी । नीतीश कुमार और गांधी परिवार के किसी भी नेता को प्रधानमंत्री पद से दूर रखना और अपनी दावेदारी बनाये रखना, दोनों ही बातों में ममता बनर्जी की रणनीति सब को समझ में आई किंतु इस सबसे नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने के सपने को बड़ा झटका लगा और नीतीश कुमार ने गठबंधन के पतन की कहानी लिखनी शुरू कर दी।
नीतीश ने इसके लिए बिहार में सरकार परिवर्तन के लिए तैयार बैठे भाजपा के अपने पुराने संपर्कों को खंगाला और भाजपा के मैनेजरो ने भी बिहार के जरिए इस बेमेल गठबंधन को चुनाव से पहले ही ध्वस्त करने के लिए नीतीश कुमार के समर्थन को हामी भर दिया। शुक्रवार को जब इस बात की घोषणा हुई तो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को राजनीति का ये खेल उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए राजनैतिक बर्बादी से कम नहीं लगा।
गठबंधन से कैसे निकले, अखिलेश की बड़ी समस्या
कदाचित प्रदेश के मुस्लिम वोटो को किसी भी कीमत पर समाजवादी पार्टी के साथ रखने के लिए और गठबंधन से खुद निकलने पर अखिलेश यादव के साथ समस्या यह है कि वह बीजेपी को हराने वाले गठबंधन से खुद निकलते हुए ना दिखे। ऐसे में गठबंधन से खुद निकलने का ठीकरा समाजवादी पार्टी के सिर पर न टूटे इसलिए उन्होंने सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे का फार्मूला अपनाया । अब तक 30 सीटो को मांग रही कांग्रेस के साथ 15- 16 सीटों पर बारगेनिंग कर रही समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अचानक कांग्रेस को 11 सीटो देने की घोषणा करते हुए यह बता दिया कि या तो इस शर्मनाक स्थिति को स्वीकार करके हमारे साथ चलो या फिर खुद उत्तर प्रदेश में गठबंधन तोड़ने का पाप सर पर ले लो जिससे मुस्लिम वोट कांग्रेस से छटक जाए ।
अखिलेश यादव की इसी ढाई चाल से फिलहाल कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व चारों खाने चित है और अजय राय ने सारी जिम्मेदारी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को दे दी है कांग्रेस में अखिलेश यादव के प्रस्ताव को लेकर चर्चा है कि अगर हमें सिर्फ 11 सीटों पर ही लड़ना है तो इससे बेहतर कांग्रेस को गठबंधन से निकलकर उत्तर प्रदेश में सभी सीटों पर लड़ना चाहिए जिससे भले ही जीत ना मिले किंतु उसके कैडर का भरोसा कांग्रेस पर बना रहे । कहने वाले तो ये भी कहते है कि अखिलेश ने एक बार फिर राहुल गांधी के मन की इच्छा पूरी कर दी है I देखना यह है कि अब अखिलेश यादव के 11 सीटों के प्रस्ताव से कांग्रेस गठबंधन को जारी रखेगी या फिर अखिलेश के नौ दो ग्यारह होने के प्लान को स्वीकृति दे देगी