राजेश बैरागी । क्या लंबे झंझट के बाद कल रविवार को होने वाले फोनरवा चुनाव में एक बार फिर 2019 जैसे परिणाम आ सकते हैं? हवाएं बता रही हैं कि मुकाबला कांटे का है और तीसरी बार लगातार सत्ता में बने रहने को चुनाव लड़ रहे योगेंद्र शर्मा और उनके पैनल को हार का मुंह देखना पड़ सकता है।
लगभग दो दशक पहले अनावश्यक रूप से नोएडा में खड़ी की गई फेडरेशन ऑफ नोएडा रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन का कल रविवार को होने जा रहा चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है।
इस चुनाव में कभी साथ-साथ रहे योगेंद्र शर्मा और राजीव गर्ग अपने अपने पैनल बनाकर आमने-सामने ताल ठोंक रहे हैं और एक अन्य साथी राजीव चौधरी एकला चलो रे की तर्ज पर अकेले ही महासचिव पद पर भाग्य आजमा रहे हैं।
यह चुनाव कई मायनों में दिलचस्प है। यह दो के बजाय तीन वर्ष बाद हो रहा है। पहले यह नवंबर माह में हो रहा था परंतु कुछ सदस्यों की आपत्ति के चलते अब हो रहा है। निवर्तमान अध्यक्ष योगेंद्र शर्मा निरंतर दो कार्यकाल पूरा करने के बावजूद फिर मैदान में हैं जबकि अपने पूर्ववर्ती एन पी सिंह की निरंतरता के विरुद्ध झंडा उठाकर ही उन्होंने 2019 में चुनाव जीता था।
फोनरवा के कुल मतदाताओं की संख्या 227 है। इसमें सर्वाधिक संख्या 55 ब्राह्मणों की है।30 वैश्य,20 पंजाबी,25 ठाकुर,22 गुर्जर,22 यादव,7 जाट तथा शेष अन्य हैं। जातिगत समीकरणों के हिसाब से योगेंद्र शर्मा के पास सर्वाधिक 55 ब्राह्मणों का समर्थन माना जा रहा है परंतु अन्य कोई बिरादरी उनके साथ खुलकर समर्थन में नहीं है।
इसके विपरीत राजीव गर्ग पैनल के साथ अधिकांश वैश्य, ठाकुर, गुर्जर, पंजाबी और यादव मतदाता बताए जा रहे हैं। इस सबके बावजूद अन्य जाति बिरादरी के मतदाताओं का समर्थन ही जीत हार तय करेगा। सभी का समर्थन हासिल करने के लिए दोनों ही पैनलों ने बीते शुक्रवार की शाम अलग अलग सहभोज का आयोजन कर अपने समर्थकों को इकट्ठा किया था।
क्या इस चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के स्थानीय सांसद डॉ महेश शर्मा और विधायक पंकज सिंह की भी कोई भूमिका है? राजीव गर्ग और योगेंद्र शर्मा दोनों ही प्रत्याशियों ने विधायक के दरबार में हाजिरी लगाई है। अंदरखाने चाहे जो जिसकी तरफदारी करे परंतु दोनों ही जनप्रतिनिधियों ने खुलकर किसी भी पैनल का समर्थन नहीं किया है। अन्य राजनीतिक दलों कांग्रेस, बसपा और समाजवादी पार्टी के लोग चुनाव में दिलचस्पी तो ले रहे हैं परंतु उनके पास किसी पैनल को समर्थन करने लायक सामर्थ्य नहीं है। पुराने भाजपाई और सपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष दीपक विग ने अपनी वरिष्ठता के लिहाज से दोनों पैनलों से मुलाकात की है।
कल रविवार को होने वाले इस चुनाव पर प्रशासन की भी नजर है।हार जीत के परे यह प्रश्न फिर भी मुंह बाए खड़ा रहेगा कि आखिर इतनी जोर आजमाइश के बाद चुनी जाने वाली फोनरवा कार्यकारिणी की इस शहर में उपयोगिता क्या है?