अगर आप भी निजी अस्पतालों के महंगे इलाज से परेशान हैं तो आपके लिए यह समाचार सुख देने वाला हो सकता है । सु्प्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्राइवेट अस्पतालों के जरिए वसूले जाने वाले मनमानी पैसे को लेकर अप्रसन्नता व्यक्त की ओर 14 साल पुराने कानून ‘क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट (सेंट्रल गवर्नमेंट)’ नियमों को लागू करने में केंद्र की असमर्थता को लेकर कड़ी आपत्ति जताई।
इन नियमों के तहत राज्यों से सलाह के बाद महानगरों, शहरों और कस्बों में बीमारियों के इलाज और उपचार के लिए एक स्टैंडर्ड रेट का नोटिफिकेशन जारी करना अनिवार्य है। एनसीआर खबर ने भी 2 दिन पहले ही निजी अस्पतालों के महंगे इलाज की लूट पर एक सर्वे आरंभ किया था आप भी अपनी राय इस सर्वे में दे सकते हैं
सुप्रीम कोर्ट में एक एनजीओ ‘वयोवृद्ध मंच फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ’ ने अधिवक्ता दानिश जुबैर खान के माध्यम से एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह क्लिनिकल स्थापना नियम, 2012 के नियम 9 के अनुसार मरीजों से वसूली जाने वाली फीस की दर निर्धारित करे।
सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘अगर केंद्र सरकार इस समस्या का समाधान ढूंढने में विफल होती है, तो हम देशभर में मरीजों के इलाज के लिए सीजीएसएच-निर्धारित स्टैंडर्ड रेट को लागू करने के लिए याचिकाकर्ता की याचिका पर विचार करेंगे।’
मीडिया में आई जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि उसने बार-बार राज्यों को इस मुद्दे पर लिखा है, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया है। इस पर अदालत ने कहा कि नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा का मौलिक अधिकार है और केंद्र अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है। अदालत ने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव को एक महीने के भीतर स्टैंडर्ड रेट के नोटिफिकेशन जारी करने के लिए राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों के साथ बैठक करने का निर्देश दिया ।
इससे पहले याचिकाकर्ता ने जस्टिस बीआर गवई और संदीप मेहता की पीठ को बताया कि केंद्र सरकार ने कोविड के दौरान मरीजों के इलाज के लिए मानक दरों को अधिसूचित करने में तत्परता दिखाई थी, और अगर राज्य इलाज के लिए दरों की सीमा तय करने में सहयोग नहीं करते हैं, तो केंद्र सरकार केंद्रीय कानूनों के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए लिए जाने वाले शुल्क को एकतरफा अधिसूचित कर सकती है।