राजेश बैरागी । बिलासपुर (गौतमबुद्धनगर) कस्बा व्यापारी अरुज सिंघल के पुत्र वैभव सिंघल की निर्मम हत्या के खुलासे के बाद क्षेत्र का कैसा माहौल है? आरोपियों को जेल भेजने और उनके विरुद्ध त्वरित न्यायालय में मुकदमा चलाने के आश्वासन के बाद क्या सबकुछ शांत हो गया है? ऊपर से ऐसा लगने के बावजूद समूचे जेवर विधानसभा क्षेत्र में एक बात लोगों के मन में बैठ गई है कि विधायक ठाकुर धीरेन्द्र सिंह ने मुस्लिम वोटों की खातिर इस हत्याकांड में व्यापारियों का साथ नहीं दिया।
गत 30 जनवरी को लापता हुए व्यापारी पुत्र वैभव का शव 11 फरवरी को चचूरा गांव में गंगनहर से बरामद हुआ था।शव के चित्र देखने के बाद जिम्स के फॉरेंसिक विभाग की एक विशेषज्ञ ने अनुमान लगाया था कि संभवतः गंगनहर में फेंकते समय वैभव पूरी तरह मरा नहीं था।सांस चलते रहने से नहर में फेंके जाने पर उसके मुंह नाक से पेट में पानी गया होगा। इस हत्याकांड को कस्बे के ही मुस्लिम समुदाय के दो युवकों ने कथित प्रेम प्रसंग के चलते अंजाम दिया था।
मामला दो समुदायों से जुड़ा होने के कारण तब माहौल बहुत गर्मा गया था। कस्बे में काफी दिनों तक पुलिस और पीएसी तैनात रही थी और विरोध में बिलासपुर के साथ कई और कस्बों के बाजार भी बंद रहे थे। व्यापारी आरोपियों को कठोर सजा दिलवाने से लेकर उनके घर ढहाने तक की मांग कर रहे थे। मामले में लापरवाही बरतने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग भी जोर-शोर से की गई थी। पुलिस का दावा था कि वैभव के जूते व कपड़े लापता होने के तीन चार दिन बाद आरोपियों की निशानदेही पर खेरली नहर के किनारे से बरामद कर लिए गए थे। परंतु जब शव मिला तो उसने कपड़े जूते सब पहने हुए थे। उसकी मोटरसाइकिल और अन्य सामान भी बरामद नहीं हुए हैं। पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया परंतु हत्याकांड से संबंधित सच जानने और बरामदगी के लिए उन्हें पुलिस कस्टडी रिमांड पर लेने की कोई कोशिश नहीं की। यह सब किसकी शह पर हुआ?
क्षेत्र में चर्चा है कि विधायक ठाकुर धीरेन्द्र सिंह ने मुस्लिम वोटों की खातिर इस हत्याकांड पर धूल डलवा दी है। क्षेत्र की हिंदू जनता इस मामले में विधायक की भूमिका को लेकर तमाम तरह के सवाल उठा रही है। भाजपा के कट्टर समर्थक क्षेत्र के एक पूर्व ग्राम प्रधान का कहना था कि इस हत्याकांड से यह साबित होता है कि हिंदुत्ववाद और अपराधियों पर प्रभावी कार्रवाई जैसा कुछ नहीं है। दूसरे दलों से आए लोग भाजपा में शामिल होकर भी अपनी जड़ों से मुक्त नहीं हो पाते हैं।