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संपादकीय : अराजकता को अपनी सफलता मान बैठी किसान सभा!

आशु भटनागर । किसी भी देश में किसानों को कैसा होना चाहिए ? किसानों को ही क्यों सभी नागरिकों को कैसा होना चाहिए ? क्या उन्हे देश का संविधान मानने वाला और नागरिकों के लिए तय किए गए टैक्स को मानने वाला नही होना चाहिए । किंतु भारत में कई किसान ऐसा नहीं सोचते है।

विगत कई वर्षों में किसान एक ऐसी कौम बन कर रह गई है जिसे अपने लिए 370 जैसे विशेष अधिकार चाहिए। देश में अन्नदाता होने का दावा करने वाले किसान इसकी आड़ में खुद के लिए विशेष रियायत चाहने लगे है । कृषि कार्यों की आड़ में खरीदी गई ट्रेक्टर ट्राली अक्सर वायवसायिक कार्यों के लिए उपयोग में आ रही है । गौतम बुध नगर में अक्सर ये ट्रैक्टर ट्राली अवैध ईंटो के विक्रय में लगे रहते है । ग्रेटर नोएडा से लेकर यमुना एक्सप्रेस वे तक इनका राज है । यमराज की तरह दौड़ रहे ये ट्रैक्टर ट्राली चर्चा में नहीं आती अगर 2 दिन पहले एक दुर्घटना का समाचार नही आता ।

खैर मुद्दे पर वापस आते है । मात्र 80 गांव और 5 सदस्य वाली  जिलापंचायत वाले गौतमबुद्ध नगर में भारतीय वामपंथी दल के सहयोगी घटक किसान सभा ने जिले से लगते ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस वे पर टोल फ्री करने की मांग की है । भारत में वामपंथ किसी भी व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए कुख्यात है। कभी उत्तर प्रदेश के मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर के औद्योगिक नगर के दुर्दशा हम सभी जानते हैं । ऐसे ही स्थानीय मजदूरों को भड़का भड़का कर वहां के उद्योगों को बंद कराकर वामपंथी की नेता सुहासिनी अली वहां से सांसद तक बन गई किंतु वहां के लोगों का भला नहीं हुआ

ऐसे में बड़ा प्रश्न है कि ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेसवे पर टोल फ्री करने कि किसानों की व्यवहारिक मांग कहां तक उचित है ? जिस जिले में किसान का मतलब अवैध कालोनी काटने तक रह गया हो वहां किसान की आड़ में हरा कपड़ा डालकर ईस्टर्न पेरिफेरल को फ्री कराकर यह तथाकथित किसान नेता क्या करना चाहते हैं।

क्या ईस्टर्न पेरिफेरल पेपर यह अपने ट्रैक्टर ट्राली लेकर जाना चाहते हैं या फिर किसानी की आड़ में यह लोग ईस्टर्न पेरिफेरल में का उपयोग अपने अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के लिए करना चाहते हैं ?

आपको बता दें की किसान सभा के अध्यक्ष डॉ रुपेश वर्मा स्वयं अधिवक्ता भी है और किसानी के अलावा गौतम बुद्ध नगर बार में प्रैक्टिस भी करते हैं । गौतम बुद्ध नगर के अंदर मौजूद स्वयंभू किसान और किसान नेताओं की अगर जांच सही से की जाए तो यह किसानी के अलावा बाकी सभी काम करते हुए मिलेंगे जिसमें मकान दुकान के किराए के वायवसाय से लेकर कई अन्य तरह के व्यवसाय शामिल है। बीते दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े किसान नेता राकेश टिकैत की संपत्ति को लेकर कई चर्चाएं आई थी ।

ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या गौतम बुद्ध नगर समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान होना सरकार से अपने अराजक और अवैध कामों के लिए लाइसेंस लेना हो गया है ? क्या गौतम बुध नगर में किसानी की आड़ में अन्य तरीकों के व्यवसाय के लिए दबाव बनाकर अपनी राजनीति को साधा जा रहा है । क्या जांच उन अधिकारियों की भी होनी चाहिए जो इन किसानों को इस तरह के विचारो में सहायता कर अराजकता को अपने हित के लिए साधने का प्रयास कर रहे हैं? ये विचार अब जनता, क्षेत्र के अधिकारियों और सरकार सभी के लिए विचारणीय हो गया है ।

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