राजेश बैरागी । क्या हम वापस कोरोना काल में लौट सकते हैं? यह प्रश्न कोविशील्ड नामक कोरोना रोधी टीका बनाने वाली ब्रिटेन की दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका की उस स्वीकारोक्ति के बाद उत्पन्न हुआ है जिसमें उसने वहां की न्यायालय के सामने कहा है कि इस टीके से हृदयाघात का खतरा हो सकता है।
अब क्या उपाय है?
लोगों ने तब कोरोना से बचाव के लिए इस टीके की तीन खुराक बढ़-चढ़कर लगवाईं थीं। टीका लगवाने वाले लोगों को तब स्वयं को बाहुबली होने का अहसास हुआ था।टीके को कोरोना पर विजय प्राप्त करने का अमोघ अस्त्र माना गया था।हम सबके मन मस्तिष्क से कोरोना का भय दूर हो गया था। क्या कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी की उपरोक्त स्वीकारोक्ति से हम एक बार फिर कोरोना के भयावह काल में पहुंच गए हैं?
कोरोना से देश में मरने वालों के सरकारी और गैर सरकारी आंकड़ों में चाहे जितना अंतर हो, जिस घर से एक भी शव निकला वही जानता है कि कोरोना किस कदर भयावह था। अस्पतालों, श्मशान घाटों में हाउस फुल के बोर्ड इससे पहले कभी इस पीढ़ी ने नहीं देखे थे। कोरोना ने किस प्रकार रिश्तों को बेनकाब किया कि बेटा पत्नी कोई भी हाथ लगाने को तैयार नहीं था।
यह महामारी सारे विश्व में फैली हुई थी। इससे पार पाने के लिए एक अदद टीके की दरकार सभी को थी। टीके की गुणवत्ता से अधिक एक ऐसे विश्वास की थी जो कोरोना से बचाव की गारंटी दे। ऐसे समय में बाबाओं की भभूत से लेकर किसी टीके में कितना अंतर रह सकता है?आज भी कोरोना एक रहस्य है। सरकारों के आंकड़े तिलस्मी हैं।उस समय हुईं अंधाधुंध मौतें तब भी सच थीं, आज भी सच हैं। टीके से हृदयाघात का संकट पुनः भय पैदा कर रहा है। हो सकता है हृदयहीन दवा कंपनियों का यह एक नया कोरोना हो।