आशु भटनागर I रविवार को गौतम बुद्ध नगर जिले के नोएडा सेक्टर 77 के संघर्ष पार्क में सोसाइटी महापंचायत की गई । जिसमें हुई बातों का निष्कर्ष यह निकल कर आया कि अगर प्राधिकरणों ने लोगों की रजिस्ट्री जल्द नहीं कराई तो वह आने वाले 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर सोसाइटियों में विधायक सांसदों को काले झंडे दिखाएंगे ।
मीडिया में आए समाचारों के आधार पर निकले निष्कर्ष के बाद यह प्रश्न बड़ा हो गया है कि आखिर नोएडा के 30 सोसाइटियों के लोगों की रजिस्ट्री ना होने के दर्द की आड़ में क्या यहां अर्बन नक्सलवाद की जमीन तैयार की जा रही है या फिर इस आंदोलन की आड़ में कुछ लोग बिल्डरों के सहयोग से बिल्डरों को बड़ा फायदा पहुंचाने की सुनियोजित साजिश कर रहे हैं लोगों की भीड़ और सरकार के जनप्रतिनिधियों को राष्ट्रीय त्योहार पर काले झंडे दिखाने का यह कॉन्बिनेशन बेहद खतरनाक है। उससे भी रोचक बात यह है कि इस पूरे आंदोलन के पीछे एक नाम जिन नवीन मिश्रा का भी सामने आ रहा है उसका सीधा संपर्क भारतीय जनता पार्टी और डॉक्टर महेश शर्मा से भी है ।
नवीन मिश्रा जिस सोसाइटी में रहते हैं उसे सोसाइटी के बिल्डर भारतीय जनता पार्टी की ही एक सहयोगी राजनीतिक दल से जुड़े बताए जाते हैं। वही इन सोसाइटियों में शामिल एक अन्य बिल्डर को चुनाव के समय स्वयं भाजपा सांसद बीजेपी में लाए थे जिन्हें बाद में कई अनियमिततायों के कारण जेल भी जाना पड़ा। ऐसे में कई बिल्डरों के सीधे भाजपा या उसके सहयोगी दलों से जुड़े होने पर और आंदोलन में प्रमुख चेहरे के तौर पर दिखाई देने वाले नवीन मिश्रा के आंदोलन करने के पृष्ठभूमि संदेह के घेरे में भी आ जाती है। इस आंदोलन में लगातार बिल्डरों को पेनल्टी से बाईपास करके सीधे प्राधिकरण द्वारा रजिस्ट्री करने के दबाव की बातें इसकी वैधानिकता पर प्रश्न खड़े करती है ।
इससे पहले कि हम डॉक्टर महेश शर्मा पर बात करें, पहले इस पूरी पहेली को सुलझाने की कोशिश करते हैं। सबसे पहले अर्बन नक्सल को समझते हैं अर्बन नक्सल का मुख्य काम शहरी क्षेत्र में उनकी स्थानीय समस्याओं को लेकर स्टेट के खिलाफ माहौल खराब करने का काम स्थानीय विचारक, कवियों, छोटे छोटे ठेकेदारो या स्वयंभू नेताओं के जरिए किया जाता है । यह लोग आम-जन मानस के मुद्दों की आड़ में लगातार उनको स्टेट के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश करते हैं, जिससे देश में अराजकता और गृह युद्ध के माहौल की ज़मीन तैयार हो I ऐसे में रजिस्ट्री के मुद्दे की आड़ में इस पूरे कार्यक्रम में जिस तरीके की भाषा का प्रयोग किया गया है उसे यह आभास होता है कि जिन लोगों के कंधे पर बंदूक रखकर नक्सलवाद की जमीन इस औद्योगिक क्षेत्र में खड़ी की जा रही है वह बेहद गंभीर है अभी तक इस क्षेत्र में किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर ऐसे आयोजन किया जा रहे थे किंतु अब सोसाइटी निवासियों के नाम पर इसकी तैयारी शुरू हो गई है ।
इसके बाद सोसाइटी महापंचायत के आयोजन को लेकर हुए खर्च और उसके पीछे बिल्डरों के खड़े होने की संभावनाओं की चर्चा होना भी बेहद जरूरी है । एनसीआर खबर ने इस कार्यक्रम के आयोजन और उसके खर्चे को लेकर तमाम चर्चाएं लोगों से की जिसके बाद यह पता लगा कि कोई भी शामिल व्यक्ति उसे खर्च को लेकर स्पष्ट बात कहने को तैयार नहीं है I कार्यक्रम में मौजूद कई लोगों ने सिर्फ वहां पहुंचने की बातें कही, ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि इस आंदोलन में नोएडा प्राधिकरण पर दबाव बनाकर बिल्डरों से पैसा लिए बिना रजिस्ट्री करने का जो खेल आयोजकों ने शुरू किया है उसमें सीधा फायदा किसका है ? आखिर क्या कारण है कि तमाम बिल्डर के विरुद्ध केस लड़ रहे नेफोवा (NEFOWA) और नेफोमा (NEFOMA) जैसे फ्लैट बायर्स संगठन और नोएडा जैसे शहर में फ्लैट बायर्स के प्रतिनिधित्व करने वाले नोफा (NOFA) ओर फोना (FONA) जैसे संगठन इस आंदोलन से दूर रहे ? उन्हें बुलाया ही नहीं गया या फिर उन्होंने इसके पीछे के कारणों को समझते हुए इससे पीछे हटना ही उचित समझा I
आयोजको से 5 प्रश्न
1) आन्दोलन में हो रहे खर्च को कौन फंड कर रहा है ?
2) महापंचायत के दावे के बाबजूद इसमें AOA पदाधिकारियों के अलावा आम बायेर्स क्यूँ नहीं दिखे
3)आन्दोलन में बिल्डर को 25% देने की बाध्यता हटाने का ही दबाब क्यूँ ?
4) रजिस्ट्री के लिए दिसम्बर माह में ही इन नेताओं से हुई बातचीत में सीईओ डॉ लोकेश एम् द्वारा जल्द रजिस्ट्री कराने के दावे के बाबजूद सडको पर उतरने की जल्दी क्यूँ ?
5) किसान आन्दोलनकारियों की तरह 26 जनवरी पर राष्ट्रीय त्यौहार गणतंत्र दिवस पर काले झंडे दिखाने की योजना क्यूँ और किसके कहने पर ?
लोगों का दावा है कि इस पूरे आंदोलन को लोगों की रजिस्ट्री के नाम पर बिल्डरों के सिंडिकेट द्वारा फंड किया जा रहा है और इसीलिए आंदोलन की राह सीधे-सीधे बिल्डरों को बाईपास कर रजिस्ट्री करने के लिए नोएडा प्राधिकरण पर दबाव बनाने की है । आरोप है कि 10% देकर जमीन लेने वाले और फ्लैट बायर्स का पैसा लेकर प्राधिकरण को न देने वाले बिल्डर अब अमिताभ कांत की रिपोर्ट को लागू करने के बाद नोएडा प्राधिकरण को 25% पैसा भी देने को तैयार नहीं हो रहे हैं और अपने लोगों को पर्दे के पीछे से ऐसे आंदोलन को प्रायोजित करवाकर करोड़ों रुपए के अपनी देनदारी को बचाने में लगे हुए है ।
नोएडा की एक बड़ी सामाजिक संस्था के अध्यक्ष ने एनसीआर खबर को बताया कि इन्हीं बिल्डर ने 10 साल पहले भी बिना रजिस्ट्री फ्लैट में एंट्री के लिए बायर्स को आगे करके इसी तरीके के आंदोलन की आड़ में सबसे पहले नियम बदलवा लिया था, जिसके चलते आज नोएडा और ग्रेटर नोएडा की सोसाइटी में बिना OC/CC के बिना रजिस्ट्री के लोग रह रहे हैं और आज उन्हें फ्लैट की रजिस्ट्री के मामले लगातार समस्या खड़ी कर रहे हैं I प्रश्न ये भी है कि बिना OC/CC बिना काम पूर्ण किये सब लोगो की रजिस्ट्री कर देने के बाद सोसाइटी में लोग काम कैसे पुरे करवाएंगे या फिर बिल्डर ऐसे प्रायोजित आन्दोलन करवा कर ऐसे ही प्रोजेक्ट से निकलना चाहते है
ऐसे में इस तरीके के आयोजनों और उनके पीछे खड़े हुए अदृश्य लोगों की चर्चा आम हो गई है । पूछा जा रहा है कि यह आंदोलन और इसकी आड़ में सीधे-सीधे बिल्डरों को फायदा पहुंचाने और राष्ट्रीय त्योहार के दिन काले झंडे दिखाने जैसे नक्सलवादी विचारों को कौन पोषित कर रहा है कौन लोगों की भावनाओं के आड़ में उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी और सबसे कमाऊ जिला कहे जाने वाले गौतम बुद्ध नगर में लगातार अस्थिरता के बीज बोने की कोशिश कर रहा है इसकी जांच अब सरकार द्वारा की जानी आवश्यक है ।