आशु भटनागर I नोएडा महानगर अध्यक्ष मनोज गुप्ता के उन्हें तीसरी बार महानगर अध्यक्ष बनने की संभावना जैसे-जैसे समाप्त होती जा रही हैं उसके साथ ही नोएडा महानगर और गौतम बुद्ध नगर जिले में वैश्य समुदाय की राजनीति के अंत होने की चर्चाएं भी आरंभ हो गई हैं । दरअसल नोएडा में शहरी बनाम ग्रामीण राजनीति के मध्य ब्राह्मण बनाम ठाकुर के साथ वैश्य समुदाय की राजनीति भी अपना जोर आजमाती रही है । ऐसे में गौतम बुध नगर में जहां एक और ब्राह्मण समाज जिले के हर बड़े संगठन में अपना प्रभाव जमाता रहा है तो कैप्टन विकास गुप्ता और मनोज गुप्ता के दौर में वैश्य समुदाय ने भी जिले की राजनीति में अपना दबदबा बनाए रखने की पूरी कोशिश की है । जबकि इनके उलट कायस्थ, पंजाबी, ओबीसी और दलित जैसी जातियां सदैव नेपथ्य में ही रही है ।
किंतु नोएडा में पंकज सिंह के आगमन के बाद इस राजनीति में वैश्य बनाम ब्राह्मण का मुद्दा क्षत्रिय बनाम ब्राह्मण हो गया । इसके बाद हाशिये पर आए वैश्य समुदाय ने के नेताओं ने बचे हुए संगठनों पर अपनी जोराजमाइश आरंभ की कैप्टन विकास गुप्ता अपने लिए स्थान खोजते हुए नोएडा से गाजियाबाद की ओर रुख कर लिए तो तमाम विवादों और विरोधो के बाबजूद वैश्य समुदाय के एक मात्र उभरे मनोज गुप्ता ने यहां पर जिला अध्यक्ष की कुर्सी पकड़ ली और उसके जरिए जिले के राजनीति में वैश्य समुदाय का झंडा बुलंद रखा ।
नोएडा में हो रही चर्चाओं के अनुसार मनोज गुप्ता के साथ ही ब्रजभूषण गर्ग, सुनील गुप्ता, विपिन अग्रवाल जैसे पुराने नाम अब राजनीतिक चर्चाओं से बाहर हो चुके हैं। भाजपा में किसी नए वैश्य समुदाय के नेता का उदय फिलहाल होता दिखाई नहीं दे रहा है, सुनील गुप्ता लगभग रिटायरमेंट के कगार पर है, समाजवादी पर्टी में अपना आधार ना बना पाने वाले विपिन अग्रवाल ने भी भाग्य सर्वोपरि मानते हुए रामलीला प्रबंधन में ही अपनी नेतागिरी को विराम दे दिया है तो समाजवादी पार्टी में जैसे तैसे अध्यक्ष बने डॉक्टर आश्रय गुप्ता के खिलाफ यादव समुदाय पहले ही झंडा बुलंद कर चुका है माना जा रहा है कि उनकी विदाई भी कभी भी हो सकती है।
कहा जाता है कि मनोज गुप्ता ने गौतम बुध नगर से लेकर मेरठ तक वेस्ट समुदाय के नेता के तौर पर लोकसभा चुनाव के दौरान टिकट पाने की कोशिश की जिसके बाद शहर के ब्राह्मण और क्षत्रिय समुदाय के नेताओं ने मनोज गुप्ता की राजनीति को किनारे लगाने का खेल शुरू कर दिया जिसके मनोज गुप्ता कहीं भी टिकट नहीं पा सके और इसके साथ ही उनके जिला अध्यक्ष से हटाए जाने से लेकर उनकी राजनीति को हाशिए पर लाने की पटकथा भी लिखी जाने लगी ।
शहर के पुराने जानकारो का दावा है कि मनोज गुप्ता के जरिए वैश्य समुदाय की राजनीति को शहर में समाप्त करने की तैयारी फोनरवा के चुनाव में मनोज गुप्ता के खुले समर्थन के बावजूद चुनाव के दिन अनुपस्थित रह कर डॉक्टर महेश शर्मा द्वारा योगेंद्र शर्मा के पक्ष में खेल पलट देने के साथ ही आरंभ हो गई थी । जिले के सभी पदों पर ब्राह्मण समुदाय को बैठाने वाले महेश शर्मा यह बिल्कुल नहीं चाहते थे कि फोनरवा और आरडब्ल्यूए के मामले में भी वैश्य समुदाय ब्राह्मण चुनाव समुदाय को कहीं चुनौती देता दिखाई दे।
ऐसे में नोएडा महानगर अध्यक्ष भले ही कोई भी हो पर मनोज गुप्ता का हटना सिर्फ किसी एक व्यक्ति विशेष का हटाना नहीं माना जा रहा है इस जिले में वैश्य समुदाय की राजनीति के अंत का ऐसा दौर माना जा रहा है जिसके बाद जिले में वैश्य समुदाय के नेताओं की राजनीति व्यापार मंडलों तक सिमट कर रह जाएगी और वैश्य समुदाय परम्परा के अनुसार जिले में राजनीतिक दलों को बस फंड करता हुआ दिखाई देगा।
नोएडा महानगर और गौतम बुध नगर की राजनीति को गंभीरता से समझने वाले राजनीतिक विश्लेषण को का दावा है कि उनके बाद बीजेपी से लेकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस तक में कोई अन्य ऐसा वैश्य समुदाय का नेता अब दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है । जो जिले में सांसद विधायक के तौर पर किसी भी पार्टी से अपना दावा पेश कर सके । इसके बाद ही माना जा रहा है कि कम से कम अगले कुछ सालों तक नोएडा और से लेकर दादरी और जेवर विधानसभा तक आने वाले समय में कोई बड़ा चेहरा वैश्य समुदाय से राजनीति करता हुआ दिखाई नहीं देगा ।