ग्रेटर नोएडा वेस्ट में फुट ओवर ब्रिज का इंतजार क्या अब लंबा होने जा रहा है । मंगलवार को ग्रेटर नोएडा वेस्ट के कई समाजसेवी जब प्राधिकरण के साइट ऑफिस पर ब्रिज के निर्माण को जल्द करने की अपनी मांग को लेकर एसीईओ से मिलने पहुंचे तो उन्हें वहां पता लगा कि ब्रिज के स्थान परिवर्तन प्रकरण पर जांच कर रही अधिकारी अन्नपूर्णा गर्ग 26 फरवरी तक की छुट्टी पर चली गई है। इसके बाद लोगों ने जांच रिपोर्ट में अधिकारियों पर कार्यवाही को लेकर लीपापोती होने का संदेह जताया है ।
लोगो ने एनसीआर खबर को बताया कि इस पूरे प्रकरण पर प्रश्न अब प्राधिकरण के कर्मचारियों पर उठते जा रहे है । एनसीआर खबर को वर्क सर्किल 7 द्वारा ठेकेदार को दिया गया एक डॉक्यूमेंट हाथ लगा है जिसमें प्रोजेक्ट के कोऑर्डिनेट्स से अलग कोऑर्डिनेट्स ठेकेदार को चिह्नित करके दिए गए । ऐसे में इस पूरे प्रकरण में अब प्रश्न यह है कि ठेकेदार को अपडेटड डॉक्यूमेंट में कोऑर्डिनेट्स के अप्रूवल किसने दिए ? किस अधिकारी ने लोगों द्वारा मांग की जा रही जगह की स्थान पर व्यावसायिक हित को आगे कर कोऑर्डिनेट बदल दिए ?
![ग्रेटर नोएडा वेस्ट में फुट ओवर ब्रिज का इंतजार होगा लम्बा! : एसीईओ अन्नपूर्णा गर्ग 26 तक छुट्टी पर, लोगो ने कहा - कब, कैसे और कहां बनेगा फुटओवर ब्रिज ? 2 FOB Latter to start the work and finalisation of location 2](https://ncrkhabar.co.in/wp-content/uploads/2024/02/FOB-Latter-to-start-the-work-and-finalisation-of-location-2-726x1024.jpg)
प्राधिकरण द्वारा पुल बनाने के लिए ठेकेदार को दिए गए आदेश के डॉक्यूमेंट को ध्यान से देखने पर पता चला कि प्राधिकरण में अधिकारी किस सरकारी निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे है । रोचक बात यह है कि ठेकेदार को दिए डॉक्यूमेंट में वर्क सर्कल सेवन के सीनियर मैनेजर का डेजिग्नेशन तो लिखा है किंतु उनका नाम वहां नहीं लिखा है, ना ही उनके नाम की स्टांप लगी है ।उसकी जगह सिर्फ साइन कर दिए गए । जबकि सरकारी नियमो में पहले से ही लिखा हैं कि आदेश करते समय अधिकारी का नाम वहां मेंशन होना चाहिए ताकि लंबे समय बाद अगर इन डॉक्यूमेंट की जांच हो तो उसे अधिकारी का नाम और जिम्मेदारी स्पष्ट तय की जा सके। प्राधिकरण के सूत्रों ने बताया कि यह गलती जानबूझकर की जाती है जिससे कोई भी टेंडर कानूनी जांच या कोर्ट के दायरे में आने के समय सीधे-सीधे अधिकारियों पर के नाम सामने ना आ सके बस उनके पद को लेकर बातें होती रहे।
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एनसीआर खबर ने 6 दिन की गहन छानबीन के बाद इस प्रोजेक्ट में शामिल ठेकेदार के संपर्क डीटेल्स निकालकर उनसे कुछ प्रश्न पूछे जिसके जवाब में उन्होंने बताया की इन FOB के लिए वर्क सर्किल 7 से लिखित डॉक्यूमेंट में गूगल कोऑर्डिनेट उनको मिले थे। इसी बीच उनको बताया गया कि ये FOB वर्क सर्कल 3 के अंतर्गत आते हैं । इसके बाद 5 फरवरी को उसके अधिकारियों ने उनके साथ मिलकर साइट पर जाकर निरीक्षण किया । वर्क सर्किल 3 के निर्देश पर ही ठेकेदार ने इन पुलो की ड्राइंग आईआईटी रुड़की को भेजा । और उसके लिए 480000 रुपए का भुगतान भी आईआईटी रुड़की को किया ।
ऐसे में अब बड़ा प्रश्न यह है कि
- क्या अधिकारियों ने अपनी गलती को छुपाने के लिए जल्दबाजी में सीईओ को गलत जानकारी दी, जिसके कारण में सीईओ ने गलत तरीके से ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट करने के मौखिक आदेश दे दिए ?
- अगर गलती प्राधिकरण के संबंधित वर्क सर्कल अधिकारियों की है तो क्या ठेकेदार द्वारा गलत जगह पर बनाए जा रहे पुल के खर्चे को प्राधिकरण अधिकारियों से वसूलेगा या फिर इसकी मार ठेकेदार पर पड़ेगी?
- क्या अधिकारियों की कारस्तानी को छिपाने के लिए अब गलत जगह पर ही पुल बनाया जाएगा ?
- क्या अधिकारियों की गलती की सजा को दबाने के लिए ही ऐसीईओ लंबी छुट्टी पर चली गई है क्योंकि यह माना जा रहा है कि मार्च के पहले सप्ताह में चुनाव आयोग लोकसभा चुनावो को लेकर अधिसूचना जारी कर देगा और उसके बाद अगले 2 महीने तक सभी कार्य रुक जाएंगे?
- क्या प्राधिकरण के भ्रष्टाचार और लाल फीता शाही की कीमत आम जनता चुकाएगी ? आखिर कब प्राधिकरण इन पुलों के लिए ठेकेदारों को काम करने के लिए कहेगा और कब आम जनता को यह ब्रिज उपयोग के लिए मिलेंगे ?