आशु भटनागर । होली शुरू हो चुकी है किंतु इस बार चुनाव के बीच अपने नेता को ईडी द्वारा जेल भेजने के विरोध में आम आदमी पार्टी ने विरोध प्रदर्शन की तैयारी की है । पार्टी का आरोप है कि उनके नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल अरविंद केजरीवाल को ईडी ने नहीं दिल्ली के केंद्र सरकार ने जेल में डाल दिया और इसको लेकर वह लगातार मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं ।
इन आरोपों के बीच मुझे 2011 का वो अन्ना आंदोलन और उसकी लहर में कहे हुए अरविंद केजरीवाल के तमाम वह शब्द याद आने लगते हैं जिनके आधार पर मैं ही नहीं तमाम लोगों ने अरविंद केजरीवाल समेत उसे पूरे आंदोलन पर भरोसा किया तब अरविंद केजरीवाल इस आंदोलन के जरिए राजनीतिक पार्टी बनकर देश की राजनीति से भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बात करते थे नैतिक मूल्यों की बात करते थे और राजनीति को बदलने की बात करते थे ।
किंतु आज एक दशक बाद मेरे साथ-साथ ऐसे बहुत लोगों को केजरीवाल के उन खोखले वादों और उनके द्वारा आज जेल जाने के बाद दिए जा रहे कुतर्कों को देखकर अफसोस होता है कभी राजनीतिक की को बदलने आए केजरीवाल खुद नैतिक तौर पर इतना नीचे गिर जाएंगे यह किसी ने सोचा नहीं था राजनीति को बदलते बदलते खुद इस भ्रष्ट्र राजनीति में शामिल हो जाएंगे यह भी कभी नहीं सोचा था।
आपको लगने लगेगा कि मैं इस समय मोदी विरोध की बात क्यों नहीं कर रहा हूं, क्यों केजरीवाल के विरोध की बात कर रहा हूं तो चुनाव के बीच मुझे सच में इस बात से मतलब नहीं है कि जीत मोदी की होगी या मोदी के विरोधियों की। किंतु केजरीवाल ने जिस तरीके से राजनीतिक मापदंडों और नैतिकता को धराशाही कर दिया है उसे पर मेरा रोष निश्चित तौर पर है।
मुझे याद आता है कि भारतीय राजनीति में एक जैन हवाला कांड हुआ था । एक जैन व्यापारी ने अपनी डायरी में लाल कृष्ण आडवाणी, प्रणव मुखर्जी, कमलनाथ और शरद यादव समेत तमाम नेताओं का नाम उसमे लिखा था और उसके आगे तीन लाख रुपए लिख दिए । नेताओं के नाम के आगे ₹300000 क्या लिखा दिखे तब की राजनीति में भूचाल आ गया राजनीति में भ्रष्टाचार और नैतिक गिरावट की बातें होने लगी
तब नाम आने भर से आडवाणी ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और कसम खाई कि वह इस कलंक के साफ होने के बाद ही चुनाव लड़ेंगे। शरद यादव ने तय किया कि केस खत्म होने तक वे मंत्री नहीं बनेंगे, कोई पद नहीं लेंगे। जनता दल के सबसे पावरफुल नेताओं होने के बावजूद वे देवेगौड़ा और गुजराल सरकार में मंत्री नहीं बने। नाम क्लियर होने के बाद, वे वाजपेयी सरकार में जाकर मंत्री बने
इन नेताओं ने राजनीति में पारदर्शिता और नैतिकता के वह उच्च मापदंड स्थापित किया जिसको केजरीवाल शायद छू भी नहीं पाएंगे। आज जिस तरीके से केजरीवाल दिल्ली सरकार को जेल से चलने की बात कर रहे हैं उसे लगता है ये नैतिकता केजरीवाल में नहीं है । अपनी इसी गिरी हुई राजनीति को बचाने के लिए वह बार-बार मोदी को हारने की काम उन लोगों के साथ मिलाकर खाने लगे हैं जिनके खिलाफ कभी उन्होंने बाकायदा कैंपेन चलाया था।
केजरीवाल सरकार बचाने के लिए राजनीति छोड़िए जीवन के आदर्श को भूल गए हैं राजनीति बदलने आए केजरीवाल राजनीति को इस कदर बदल देंगे यह शायद ही किसी ने सोचा होगा कीचड़ साफ करने उतरे अरविंद केजरीवाल कीचड़ की जगह वहां ग्रीस डाल देंगे यह भी शायद ही किसी ने सोचा होगा किंतु होली से पहले मेरे मन में बस एक ही प्रश्न है कि क्या केजरीवाल के इतने नीचे गिरने के बावजूद दिल्ली की जनता अभी भी केजरीवाल को सही मानती है क्या रोबिन हुड को अपना नायक मानने वाली जनता यह भूल जाती है कि वह आदमी जो आप पर फ्री की रेवड़ियां लूट रहा है वह किसी के को बेचकर उन रेवड़ियों को ला रहा है तो उसे वह आदमी महान नहीं हो सकता क्योंकि लोकतंत्र में सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर भ्रष्टाचारी बलात्कारी और अपराधी व्यक्ति भी चुनाव जीत जाता है तो उसके शोक खून माफ हो जाते हैं और शायद केजरीवाल लोकतंत्र की इसी कमजोरी को लगातार आजमा कर फायदा उठा रहे हैं ।