आशु भटनागर । ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के कार्यालय पर हो रहे तीन दिवसीय किसान महापंचायत के बारे में तमाम किस्म की चर्चाएं सामने आ रही हैं । स्थानीय लोगों की चर्चाओं में इन आंदोलन को किसान नेताओं कि अधिकारियों पर दबाव और ब्लैकमेलिंग की राजनीति बताया जा रहा है तो वही प्राधिकरण में कहा जा रहा है कि यही किसान नेता बैक डोर से अधिकारियों से अपने मन मुताबिक प्लॉट के लिए दबाव बनाते रहते हैं । जब उनके दबाव में अनुचित कामों को अधिकारी मना कर देते हैं तब यह दिखाने के लिए ऐसे आंदोलन कर लेते हैं इन आंदोलनों के लिए भीड़ जमा करने के लिए अक्सर मासूम जनता को बुलाकर यहां लाया जाता है जिसमें बड़े खिलाड़ी बीच कार्यक्रम में 21000, 51000 के दान देने की बातें करके भूमिहीनों की भावनाओं का दोहन भी करते हैं ।
सोमवार को शुरू हुए इस नए किसान महापंचायत के बाद एनसीआर खबर ने जब प्राधिकरण में इसको लेकर बातचीत करना शुरू किया गया तो प्रथम दिन ही अधिकारियों से बातचीत के नाटक को गलत बताते हुए लोगों ने कहा कि जब किसान पहले ही तीन दिन का अल्टीमेटम देकर धरने पर बैठे हैं तो अधिकारियों को वहां बातचीत करने जाने की जरूरत क्या थी ?
सूत्रों की माने तो किसान आंदोलन कर रहे कई किसान नेताओं की सौदेबाजी अधिकारियों के साथ कई तरीके के मुद्दों पर चल रही है पहले मुद्दे में किसान नेता अक्सर अपने साथ के लोगों के प्लॉट मुख्य लोकेशन पर लगवाने के दबाव बनाने की कोशिश करते हैं इसके लिए कभी विपक्ष कभी सत्ता पक्ष के नाम पर अधिकारियों को दबाव में लेने की कोशिश की जाती है । स्वयं किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने किसान नेताओं की इस सौदेबाजी का जिक्र अपने भाषण में किया था।
सूत्रों का दावा है कि इस तरीके के दबावों को फिलहाल प्राधिकरण के अधिकारियों ने मना कर दिया है दावा किया जा रहा है कि किसानों को दो टूक कह दिया गया है कि जो गलतियां 2007 से 17 तक की गई हैं अब उनको रिपीट नहीं किया जाएगा । किसान नेताओं की अनावश्यक मांगों को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जाएगा इसके बाद किसान नेता दबाव के लिए इस तीन दिवसीय आंदोलन के लिए तैयार हो गए ।
प्राधिकरण के सूत्रों की माने तो हाई पावर कमेटी के नाम पर आंदोलन में जो हल्ला मचाया जा रहा है उसकी कहानी भी कुछ और ही है दरअसल हाई पावर कमेटी में किसान अनियमितताओं पर लाबी अलग ही तरीके से कम कर रही है दरअसल किसान नेता दबाव बनाने के लिए हाई पावर कमेटी के जो मांगे मान ली जाती हैं उसे पर तो कुछ नहीं कहते किंतु जो मांगे उनके अनुरूप नहीं मानी जा रही होती या नहीं मानी जा सकती हैं उसको लेकर लगातार दबाव बना रहे हैं । जिसके कारण एक पक्षीय हो रहे इस समझौते से जिले के विकास पर असर पड़ रहा है ।
वर्तमान में किसान नेताओं ने कई ऐसे किसानों की जमीनों की सौदेबाजी को अटका रखा है जिसके कारण कई जगह मुख्य मार्ग रुके हुए हैं । अधिकारियों की माने तो किसान इस शहर के विकास की जगह अपने निजी हितों को सर्वोपरि रखकर अक्सर दबाव की राजनीति करना चाहते हैं इसके चलते पूरे ग्रेटर नोएडा में विकास के कई कार्य, जिनमें सड़क, जल और सीवर लाइन जैसे मुद्दे शामिल हैं रुक रहे है । अगर अधिग्रहण के बाद किसानों का ऐसा हटीला रवैया न रहा होता और तब के प्राधिकरण में रहे अधिकारी के साथ मिलकर भ्रष्टाचार की कहानी ना लिखी गई होती तो ग्रेटर नोएडा विकास की तमाम कहानी लिख रहा होता ।
एनसीआर खबर से निजी बातचीत में प्राधिकरण के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सवाल पूछा कि आखिर ऐसा क्या कारण था की 2007 से लेकर 2023 तक प्राधिकरण के पास सैलरी देने के लिए पैसे नहीं थे ऐसा क्या कारण था कि जब भी प्राधिकरण जमीन की बात करता था तो यहां जमीन तक दिखाई नहीं देती थी। अगर वर्तमान सीईओ के प्रयासों से नए प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू नहीं किया गया होता , पुराने प्रोजेक्ट्स के लिए जमीनों का काम नहीं होता तो कहां से इन सब के लिए पैसा आता ।
पूरे क्षेत्र में 2022- 23 के बाद जमीनों के बढ़े हुए दामों का लाभ आखिर कौन ले रहा है ? लेकिन यही किसान जमीनों के बड़े हुए दामों की तो बात चाहते हैं किंतु शहर के विकास को होने देना नहीं चाहते हैं जिसके चलते बार-बार आंदोलन की आड़ में अपने निजी हित साधने के प्रयास चलते रहते हैं ।
संभवतः यही कारण है कि इस समय जिले में 45 से ज्यादा किसान संगठन कम कर रहे हैं एक बड़े किसान संगठन के नेता ने हंसते हुए कहा कि किसान संगठनों के वजूद की स्थिति वर्तमान में ऐसी हो गई है कि कहीं-कहीं तो पिता राष्ट्रीय अध्यक्ष है, बेटा प्रदेश उपाध्यक्ष और उसकी पत्नी राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष है पूरा किसान संगठन एक अर्टिगा कार में आ जाता है ।
इस बात की सच्चाई सोमवार को किसान आंदोलन शुरू होने से एक रात पहले हुए मंच पर बैठने को लेकर किसानों के बीच झगड़े की चर्चाओं से भी साबित होती है । चर्चाओं के अनुसार आंदोलन शुरू होने से एक रात पहले संयुक्त किसान मोर्चा के संगठनों में मंच पर बैठने को लेकर आपस में ही तलवार खींच गई थी और कोई सहमति न बनते देखा मंच को ही इतना छोटा कर दिया गया कि वहां कोई बैठ ही नहीं सका ।
ऐसे में एक बार फिर से किसान आंदोलन के नाम पर बढ़ रहे किसान नेताओं और उनके आंदोलन पर चर्चाओं की आवश्यकता है इसके साथ यह भी आवश्यकता है की कहानी शोषण की आड़ में फिर से उसी नए किस्म की दलाली और अनुचित लाभ ना शुरू हो जाए । जिसके लिए यह प्राधिकरण एक दशक तक बदनाम रहा है ।